गुरुवार, फ़रवरी 09, 2012

इंसान बारूद है........

इंसान फूट पड़ता है,
धमाके के साथ,
इंसान बारूद है,

ये बारूद चिंगारियों से नहीं दगता,
ज्वालामुखी के लावों से भी नहीं,
आग की सुनामी भी पचा जाता है ये,
ये बारूद जुल्म की इंतहाँ से फूट पड़ता है,
इंसान फूट पड़ता है,
धमाके के साथ,
इंसान बारूद है,

बारूद सीलन से ख़राब हो जाता है,
सीलन ख़ामोशी है,
चुप्पी है,
डर है,
दब्बूपन है,
मौन है,
सुरक्षा के लिए आकुलता है,

सीलन बढ़ रही है वतन में,
मुझे डर है,
कि कहीं वतन का सारा बारूद ख़राब न हो जाए,
और मैं फिर कभी  न कह पाऊँ कि......
 
इंसान  फूट पड़ता है,
धमाके के साथ,
इंसान बारूद है,
 
तुम्हारा --अनंत 

1 टिप्पणी:

aabid ने कहा…

A touching poem with a hard hitting picture...