बुधवार, फ़रवरी 23, 2011

न जाने मैं क्यों रोता हूँ ,

न जाने मैं क्यों रोता हूँ ,
मेघ नाचते हैं पूरी रात ह्रदय में ,
जब बचता है थोडा समय सूर्योदय में ,
मन के खेत जोत के साथी, यादें तेरी बोता हूँ 
न जाने मैं क्यों रोता हूँ ,
ये सारा जग रात ओढ़ कर सो जाता है ,
स्वपन नगर में ,स्वप्न देख कर खो जाता है,
पर मैं तो अंगारों की शैया पर ,न जगता हूँ न सोता हूँ 
न जाने मैं क्यों रोता हूँ ,
तुझे मेरी क्या फ़िकर है प्यारे ,
तूने तो तोड़े बंधन सारे ,
अब कुछ कैसे कहूं मैं तुझसे,क्या मैं तेरा होता हूँ ,  
न जाने मैं क्यों रोता हूँ ,
तुम्हारा --अनंत

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